8.4.37 |
पदान्तस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.37 |
8.4.38 |
पदव्यवायेऽपि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.38 |
8.4.39 |
क्षुभ्नाऽऽदिषु च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.39 |
8.4.4 |
वनं पुरगामिश्रकासिध्रकाशारिकाकोटराऽग्रेभ्यः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.4 |
8.4.40 |
स्तोः श्चुना श्चुः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.40 |
8.4.41 |
ष्टुना ष्टुः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.41 |
8.4.42 |
न पदान्ताट्टोरनाम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.42 |
8.4.43 |
तोः षि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.43 |
8.4.44 |
शात् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.44 |
8.4.45 |
यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.45 |
8.4.46 |
अचो रहाभ्यां द्वे | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.46 |
8.4.47 |
अनचि च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.47 |
8.4.48 |
नादिन्याक्रोशे पुत्रस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.48 |
8.4.49 |
शरोऽचि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.49 |
8.4.5 |
प्रनिरन्तःशरेक्षुप्लक्षाम्रकार्ष्यखदिरपियूक्षाभ्योऽसंज्ञायामपि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.5 |