8.4.50 |
त्रिप्रभृतिषु शाकटायनस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.50 |
8.4.51 |
सर्वत्र शाकल्यस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.51 |
8.4.52 |
दीर्घादाचार्याणाम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.52 |
8.4.53 |
झलां जश् झशि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.53 |
8.4.54 |
अभ्यासे चर्च्च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.54 |
8.4.55 |
खरि च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.55 |
8.4.56 |
वाऽवसाने | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.56 |
8.4.57 |
अणोऽप्रगृह्यस्यानुनासिकः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.57 |
8.4.58 |
अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.58 |
8.4.59 |
वा पदान्तस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.59 |
8.4.6 |
विभाषौषधिवनस्पतिभ्यः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.6 |
8.4.60 |
तोर्लि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.60 |
8.4.61 |
उदः स्थास्तम्भोः पूर्वस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.61 |
8.4.62 |
झयो होऽन्यतरस्याम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.62 |
8.4.63 |
शश्छोऽटि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.63 |