8.4.1 |
रषाभ्यां नो णः समानपदे | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.1 |
8.4.10 |
वा भावकरणयोः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.10 |
8.4.11 |
प्रातिपदिकान्तनुम्विभक्तिषु च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.11 |
8.4.12 |
एकाजुत्तरपदे णः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.12 |
8.4.13 |
कुमति च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.13 |
8.4.14 |
उपसर्गादसमासेऽपि णोपदेशस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.14 |
8.4.15 |
हिनुमीना | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.15 |
8.4.16 |
आनि लोट् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.16 |
8.4.17 |
नेर्गदनदपतपदघुमास्यतिहन्तियातिवातिद्रातिप्सातिवपतिवहतिशाम्यतिचिनोतिदेग्धिषु च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.17 |
8.4.18 |
शेषे विभाषाऽकखादावषान्त उपदेशे | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.18 |
8.4.19 |
अनितेः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.19 |
8.4.2 |
अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.2 |
8.4.20 |
अन्तः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.20 |
8.4.21 |
उभौ साभ्यासस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.21 |
8.4.22 |
हन्तेरत्पूर्वस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.4.22 |