8.3.72 |
अनुविपर्यभिनिभ्यः स्यन्दतेरप्राणिषु | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.72 |
8.3.73 |
वेः स्कन्देरनिष्ठायाम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.73 |
8.3.74 |
परेश्च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.74 |
8.3.75 |
परिस्कन्दः प्राच्यभरतेषु | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.75 |
8.3.76 |
स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्यः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.76 |
8.3.77 |
वेः स्कभ्नातेर्नित्यम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.77 |
8.3.78 |
इणः षीध्वंलुङ्लिटां धोऽङ्गात् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.78 |
8.3.79 |
विभाषेटः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.79 |
8.3.8 |
उभयथर्क्षु | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.8 |
8.3.80 |
समासेऽङ्गुलेः सङ्गः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.80 |
8.3.81 |
भीरोः स्थानम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.81 |
8.3.82 |
अग्नेः स्तुत्स्तोमसोमाः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.82 |
8.3.83 |
ज्योतिरायुषः स्तोमः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.83 |
8.3.84 |
मातृपितृभ्यां स्वसा | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.84 |
8.3.85 |
मातुःपितुर्भ्यामन्यतरस्याम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.85 |