8.3.45 |
नित्यं समासेऽनुत्तरपदस्थस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.45 |
8.3.46 |
अतः कृकमिकंसकुम्भपात्रकुशाकर्णीष्वनव्ययस्य | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.46 |
8.3.47 |
अधःशिरसी पदे | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.47 |
8.3.48 |
कस्कादिषु च | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.48 |
8.3.49 |
छन्दसि वाऽप्राम्रेडितयोः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.49 |
8.3.5 |
समः सुटि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.5 |
8.3.50 |
कःकरत्करतिकृधिकृतेष्वनदितेः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.50 |
8.3.51 |
पञ्चम्याः परावध्यर्थे | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.51 |
8.3.52 |
पातौ च बहुलम् | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.52 |
8.3.53 |
षष्ठ्याः पतिपुत्रपृष्ठपारपदपयस्पोषेषु | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.53 |
8.3.54 |
इडाया वा | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.54 |
8.3.55 |
अपदान्तस्य मूर्धन्यः | |
अतिदेशः, अधिकारः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.55 |
8.3.56 |
सहेः साडः सः | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.56 |
8.3.57 |
इण्कोः | |
अतिदेशः, अधिकारः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.57 |
8.3.58 |
नुम्विसर्जनीयशर्व्यवायेऽपि | |
अतिदेशः |
https://ashtadhyayi.com/sutraani/8.3.58 |